Barbarika: कौन है बाबा खाटू श्याम, क्यों दर्शन के लिए लगती है लाखों लोगों की भीड़

Barbarika: कौन है खाटू श्याम (Khatu Shyam), जिनके नाम मात्र से ही लोगों दुख होते है दूर, जिनके बर्थडे पर आती है लाखों लोगों की भीड़ जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी....

Barbarika: कौन है बाबा खाटू श्याम, क्यों दर्शन के लिए लगती है लाखों लोगों की भीड़

खाटू श्याम (Khatu Shyam) को भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार (Kalyugi avatar of Lord Shri Krishna) के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहे जाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। राजस्थान के सीकर जिले में इनका भव्य मंदिर स्थित जहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। लोगों का विश्वास है कि बाबा श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं और जिसके पास कुछ नहीं होता उसको भी राजा बना सकते हैं। 

कौन हैं बाबा खाटू श्याम - Who is Baba Khatu Shyam

बाबा खाटू श्याम (Baba Khatu Shyam) का संबंध महाभारत काल (Mahabharata period) से माना जाता है। यह पांडुपुत्र भीम (Panduputra Bhima) के पौत्र थे। ऐसी कथा है कि खाटू श्याम (Khatu Shyam) की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित होकर श्रीकृष्ण ने इन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया।

खाटू श्याम की कथा - Story of Khatu Shyam

लाक्षागृह की घटना में प्राण बचाकर वन-वन भटकते पांडवों की मुलाकात हिडिंबा नाम की राक्षसी से हुआ। यह भीम को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। माता कुंती की आज्ञा से भीम (Bhima) और हिडिंबा (Hidimba) का विवाह हुआ जिससे घटोत्कच (Ghatotkacha) का जन्म हुआ। घटोत्कच (Ghatotkacha) का पुत्र हुआ बर्बरीक (Barbarika) जो अपने पिता से भी शक्तिशाली और मायाबी था।

– बर्बरीक (Barbarika) देवी का उपासक था। देवी के वरदान से उसे तीन दिव्य बाण प्राप्त हुए थे जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे। इनकी वजह से बर्बरीक (Barbarika) हमेशा अजेय था।

-महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक (Barbarika) युद्ध देखने के इरादे से कुरुक्षेत्र आ रहा था। श्रीकृष्ण (Shri Krishna) जानते थे कि अगर बर्बरीक (Barbarika) युद्ध में शामिल हुआ तो परिणाम पाण्डवों के विरुद्ध होगा। बर्बरीक (Barbarika) को रोकने के लिए श्री कृष्ण (Shri Krishna) गरीब ब्राह्मण (Brahmin) बनकर बर्बरीक (Barbarika) के सामने आए। अनजान बनते हुए श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने बर्बरीक (Barbarika) से पूछ कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो। जवाब में बर्बरीक(Barbarika) ने बताया कि वह एक दानी योद्धा है जो अपने एक बाण से ही महाभारत युद्ध का निर्णय कर सकता है। श्री कृष्ण (Shri Krishna) ने उसकी परीक्षी लेनी चाही तो उसने एक बाण चलाया जिससे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया। एक पत्ता श्रीकृष्ण (Shri Krishna) के पैर के नीचे था इसलिए बाण पैर के ऊपर ठहर गया।

– श्रीकृष्ण (Shri Krishna) बर्बरीक (Barbarika) की क्षमता से हैरान थे और किसी भी तरह से उसे युद्ध में भाग लेने से रोकना चाहते थे। इसके लिए श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने बर्बरीक (Barbarika) से कहा कि तुम तो बड़े पराक्रमी हो मुझ गरीब को कुछ दान नहीं दोगे। बर्बरीक (Barbarika) ने जब दान मांगने के लिए कहा तो श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने बर्बरीक (Barbarika) से उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक (Barbarika) समझ गया कि यह ब्राह्मण नहीं कोई और है और वास्तविक परिचय देने के लिए कहा। श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने अपना वास्तविक परिचय दिया तो बर्बरीक (Barbarika) ने खुशी-खुशी शीश दान देना स्वीकर कर लिया।

-रात भर भजन-पूजन कर फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान पूजा करके, बर्बरीक (Barbarika) ने अपने हाथ से अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया। शीश दान से पहले बर्बरीक (Barbarika) ने श्रीकृष्ण (Shri Krishna) से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी इसलिए श्री कृष्ण श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने बर्बरीक बर्बरीक (Barbarika) के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया।

-युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक (Barbarika) का शीश कर सकता है। बर्बरीक (Barbarika) के शीश ने बताया कि युद्ध में श्रीकृष्ण (Shri Krishna) का सुदर्शन चक्र चल रहा था जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे। द्रौपदी (Draupadi) महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं।

-श्री कृष्ण (Shri Krishna) ने प्रसन्न होकर बर्बरीक (Barbarika) के उस कटे सिर को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम (Shyam) नाम से पूजित होगे तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी।

स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम (Baba Shyam), खाटू धाम (Khatu Dham) में स्थित श्याम कुण्ड (Shyam Kund) से प्रकट हुए थे। श्री कृष्ण (Shri Krishna) विराट शालिग्राम रूप में सम्वत् 1777 से खाटू श्याम जी के मंदिर में स्थित होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर कर रहे हैं।

हर साल लगता है खाटूश्याम मेला - Khatushyam fair is held every year

प्रत्येक वर्ष होली के दौरान खाटू श्यामजी (Khatu Shyamji) का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी (Khatu Shyamji) के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटूश्याम जी, मोर्विनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी (Baba Shyam, Hare Ka Sahara, Lakhdatar, Khatushyam Ji, Morvinandan, Khatu Ka Naresh and Sheesh Ka Dani) इन सभी नामों से खाटू श्याम को उनके भक्त पुकारते हैं। खाटूश्याम जी ((Khatu Shyamji)) मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। बड़े से बड़े घराने के लोग आम आदमी की तरह यहां आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं। कहा जाता है ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

भक्तों की इस मंदिर में इतनी आस्था है कि वह अपने सुखों का श्रेय खाटू श्याम जी (Khatu Shyam ji) को देते हैं। भक्त बताते हैं कि बाबा खाटू श्याम (Baba Khatu Shyam) सभी की मुरादें पूरी करते हैं। खाटूधाम (Khatu Dham) में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं।