जानिए क्यों करते है लोग तीर्थ यात्रा, कैसे पूरी होती है कामना और क्या होता है जीवन में परिवर्तन

दुनिया के लगभग सभी धर्म और मजहबों के अपने देवी-देवता, उनसे जुड़े ग्रंथ और मान्यताएं तो हैं ही, सदियों से कुछ विशेष तीर्थ स्थान भी तय हैं। इनसे सरोकार रखने वाले समुदायों के दिलों में इनके प्रति श्रद्धा, आस्था और विश्वास जैसे अभिन्न आंतरिक भाव जुड़े होते हैं।

जानिए क्यों करते है लोग तीर्थ यात्रा, कैसे पूरी होती है कामना और क्या होता है जीवन में परिवर्तन

हर हिन्दू के लिए तीर्थ करना पुण्य कर्म है। तीर्थों में चार धाम की यात्रा करना जरूरी है। अत: जिसने यात्राएं नहीं की उसका जीवन व्यर्थ ही समझो। हिन्दू धर्म मानता है कि जन्म लेकर मनुष्‍य जीवन में आएं हैं तो दुनिया को देखना जरूरी है। देखने से भी बढ़कर है दर्शन करना। तीर्थ दर्शन करना।

दुनिया के लगभग सभी धर्म और मजहबों के अपने देवी-देवता, उनसे जुड़े ग्रंथ और मान्यताएं तो हैं ही, सदियों से कुछ विशेष तीर्थ स्थान भी तय हैं। इनसे सरोकार रखने वाले समुदायों के दिलों में इनके प्रति श्रद्धा, आस्था और विश्वास जैसे अभिन्न आंतरिक भाव जुड़े होते हैं।

हिन्दू धर्म में यात्रा करने का बहुत महत्व है। इसीलिए इस धर्म में तीर्थ यात्री, परिव्राजक और परिक्रमा जैसे शब्द हैं। हर अनुयायी की इच्छा होती है कि वह अपने पूरे जीवन काल में कम से कम एक मर्तबा अपने मजहब से जुड़े पवित्र स्थानों का दीदार करे, क्योंकि इन तीर्थ यात्राओं के अर्थ सामान्य यात्राओं से बड़े अलग होते हैं। उन यात्राओं में अहंकार को पूरी तरह विसर्जित करके संसारी दुनिया में शुद्ध-बुद्ध होकर लौटने का भाव समाहित होता है।

हिन्दू धर्म के अनुसार व्यक्ति का जन्म मोक्ष के लिए हुआ है। मोक्ष का व्यावहारिक अर्थ होता है आत्मज्ञान या परमज्ञान को उपलब्ध होना। इसे योग में समाधि, जैन धर्म में कैवल्य, बौद्ध धर्म में निर्वाण प्राप्त करना कहा जाता है। धर्म के सारे उपक्रम, रीति रिवाज या परंपरा इसी के लिए हैं। उसी में एक है तीर्थ यात्रा करना।

तीर्थ यात्राओं का सीधा संबंध मन, विचार और आत्मा की शुद्धि से होता है। ये अपने आपमें निरंतर सकारात्मक ऊर्जा स्पंदित करने वाले स्थान होते हैं। यह बात सही है कि तीर्थ स्थानों का संबंध धर्म से होता है, लेकिन यात्राओं का स्वरूप हमेशा आध्यात्मिक होता है। भाव के साथ की गई यात्रा अंतरात्मा को बदलने की ताकत रखती है।

तीर्थ यात्रा के दौरान कई तरह की परिक्रमाएं की जाती है। सभी परिक्रमाओं के करने के अलग अलग समय होते हैं। तीर्थ परिक्रमाएं:- जैसे चौरासी कोस परिक्रमा, अयोध्या, उज्जैन या प्रयाग पंचकोशी यात्रा, राजिम परिक्रमा आदि। इसके अंतर्गत नदी परिक्रमा भी आती है। जैसे नर्मदा, गंगा, सरयु, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी परिक्रमा आदि। चार धाम परिक्रमा:- जैसे छोटा चार धाम परिक्रमा या बड़ा चार धाम यात्रा। पर्वत परिक्रमा:- जैसे गोवर्धन परिक्रमा, गिरनार, कामदगिरि, तिरुमलै परिक्रमा आदि।

कई निर्गुण संतों ने तीर्थ स्थानों के महत्वों को खारिज कर उनके हृदय में ही होने की बात को तवज्जो दी है, लेकिन सामूहिक आध्यात्मिक यात्राओं को वैचारिक आंदोलन का हिस्सा भी माना गया है। महाराष्ट्र में वारकरी यात्रा, रामदेवरा जाने वाले जातरू इत्यादि इसके सुंदर उदाहरण हैं।

देश भर में नदियों, सरोवरों का साथ और तीर्थ का विधान है जो निर्मलता, पवित्रता और पारदर्शिता का सबसे सुंदर प्रतीक है। अनेक सूफी संतों के आश्रम, समाधियां, दरगाहें, फकीरों की धूणियां, गुरुओं के द्वारे, डेरे और दरबार दिलों में उठती अरदास की तामील के ठिकाने बने हैं।

तीर्थ स्थानों और इन यात्राओं ने तमाम सामाजिक दायरों को लांघकर सांस्कृतिक एवं सामरिक दृष्टि से भी पूरे देश के भूगोल को एक सूत्र में पिरोया है। इन तीर्थ यात्राओं ने इंसानियत को कई स्तरों पर जोड़ने का संदेश देकर सहिष्णुता और आपसी विश्वास की अनुपम भावनाओं को सुनिश्चित और सिंचित किया है।

तीर्थों को महज किसी धर्म या मजहब के नजरिए से देखना उनकी अहमियत को कम करना है। हमारे व्यक्तित्व को आध्यात्मिक ऊंचाई देकर ये तीर्थ मानव जीवन की सार्थकता बढ़ाते हैं।