Navratri की दूसरी देवी ब्रह्मचारिणी, जानिए क्यों लेना पड़ा था आद‍िशक्‍त‍ि को ये रूप (Brahmacharini, the second goddess of Navratri, katha)

मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि (Navratri) के दिनों में देवी जगत माता पृथ्वी पर 9 दिनों तक भ्रमण करती हैं और इन 9 दिनों में सभी माता के नौ रूपों (nine forms of Mata )की पूजा करते हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini)स्वरूप की पूजा की जाती है। तो चलिए जानते है की माता को ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini) क्यों कहा जाता है...

Navratri की दूसरी देवी ब्रह्मचारिणी, जानिए क्यों लेना पड़ा था आद‍िशक्‍त‍ि को ये रूप (Brahmacharini, the second goddess of Navratri, katha)

Navratri: मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दिनों में देवी जगत माता पृथ्वी पर 9 दिनों तक भ्रमण करती हैं और इन 9 दिनों में सभी माता के नौ रूपों की पूजा करते हैं। ज्यादातर लोग नवरात्रि का व्रत रखते हैं और जो लोग व्रत नहीं रखते हैं, वे इनकी पूजा जरूर करते हैं. शास्त्रों के अनुसार मां के नौ रूपों की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। 

इन दिनों मां की आरती, पूजा और श्लोकों को पढ़ने से मां बहुत जल्द प्रसन्न होती है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मचारिणी माता ( Maa Brahmacharini) को ब्रह्म का रूप माना गया है। धर्म के अनुसार ब्रह्मचारिणी माता अपने भक्तों को मनोवांछित फल देती है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की प्रवृत्ति होती है। मां का यह रूप बहुत ही भव्य और सुंदर है। इस रूप में माता अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं। जानिए आदिशक्ति के ब्रह्मचारिणी रूप की कथा।

माँ ब्रह्मचारिणी व्रत कथा - Mother Brahmacharini Vrat Katha

Chaitra Navratri 2019 2nd Day Puja: Goddess Maa Brahmacharini Navratri 2nd  Day Puja and Mantra and Significance in Hindi नवरात्र के दूसरे दिन करें  देवी मां ब्रह्मचारिणी की आराधना, जानें पूजा विधि

मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मचारिणी माता ने अपने पिछले जन्म में राजा हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। बड़े होने के बाद मां ने नारद जी की शिक्षाओं से भगवान शिव शंकर को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। इसी तपस्या के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। उन्होंने एक हजार साल तक फल और फूल खाकर समय बिताया और सौ साल तक जमीन पर ही रखकर तपस्या की।

शिव शंकर को पाने के लिए माता ने कठोर व्रत रखा। खुले आसमान के नीचे उन्हें बारिश और धूप का भीषण दर्द सहना पड़ा। तीन हजार साल तक मां ने टूटे हुए बिल्वपत्र खाकर भोलेनाथ की पूजा की। बाद में मां ने भी सूखे बिल्वपत्र खाना बंद कर दिया। इसी वजह से उनका नाम अर्पणा भी है। माता ने निर्जल और भूखे रहकर कई हजार वर्षों तक घोर तपस्या की।

कठिन तपस्या से देवी मां का शरीर पूरी तरह से सूख गया। तब देवताओं, मुनियों ने ब्रह्मचारिणी माता की तपस्या की सराहना करते हुए कहा, हे माता, संसार में इतनी कठोर तपस्या कोई नहीं कर सकता। ऐसी तपस्या आप ही कर सकते हैं। आपकी इस तपस्या से आपको भोलेनाथ पति के रूप में अवश्य ही प्राप्त होंगे। यह सुनकर ब्रह्मचारी ने तपस्या को पूरा किया और अपने पिता के घर चली गई। वहां जाने के कुछ दिन बाद मां ने शिव शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया।